राणा सांगा: मेवाड़ का वीर योद्धा और राष्ट्रनायक
- Marwad.Org
- Mar 20
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भारतीय इतिहास में मेवाड़ की धरती ने अनेक वीर योद्धाओं को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने साहस, पराक्रम और देशभक्ति से इतिहास के पन्नों में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित किया है। इन्हीं महान योद्धाओं में से एक हैं राणा सांगा, जिन्हें मेवाड़ के गौरव और हिंदू साम्राज्य के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। राणा सांगा ने न केवल मेवाड़ को एक नई पहचान दी, बल्कि विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ अपने अदम्य साहस से भारतीय इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी।
प्रारंभिक जीवन और उत्तराधिकार
राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल, 1482 को मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश में हुआ था। उनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था, लेकिन इतिहास में वे राणा सांगा के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे राणा रायमल के पुत्र थे और अपने पिता की मृत्यु के बाद मेवाड़ के सिंहासन पर बैठे। राणा सांगा ने अपने शासनकाल में मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित किया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
युद्ध कौशल और पराक्रम
राणा सांगा अपने समय के सबसे शक्तिशाली और साहसी योद्धाओं में से एक थे। उन्होंने अपने जीवन में 100 से अधिक युद्ध लड़े और अधिकांश में विजय प्राप्त की। उनके शरीर पर 80 से अधिक घाव थे, जो उनके युद्ध कौशल और साहस का प्रतीक थे। उन्होंने अपने शासनकाल में मालवा, गुजरात और दिल्ली सल्तनत जैसे शक्तिशाली राज्यों को पराजित किया और मेवाड़ की शक्ति को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।

खानवा का युद्ध
राणा सांगा के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक युद्ध खानवा का युद्ध था, जो 17 मार्च, 1527 को बाबर और राणा सांगा के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ एक विशाल सेना का नेतृत्व किया, लेकिन दुर्भाग्यवश वे इस युद्ध में पराजित हुए। इस युद्ध का परिणाम भारतीय इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, क्योंकि इसके बाद मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी। हालांकि, राणा सांगा का साहस और दृढ़ संकल्प आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
राणा सांगा की विरासत
राणा सांगा ने न केवल युद्ध कौशल में, बल्कि प्रशासनिक क्षमता में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने मेवाड़ को एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य के रूप में स्थापित किया और अपने लोगों के कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। उनकी वीरता और देशभक्ति ने उन्हें जनता का हृदय सम्राट बना दिया।
राणा सांगा की मृत्यु 30 जनवरी, 1528 को हुई, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारतीय इतिहास में जीवित है। उन्होंने अपने जीवन में जो साहस और दृढ़ संकल्प दिखाया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है। राणा सांगा ने साबित किया कि सच्चा योद्धा वही होता है, जो अपने सिद्धांतों और देश के लिए हर संघर्ष का सामना करने के लिए तैयार रहता है।
निष्कर्ष
राणा सांगा भारतीय इतिहास के उन महानायकों में से एक हैं, जिन्होंने अपने पराक्रम और साहस से देश की रक्षा की और अपने लोगों के लिए एक नई मिसाल कायम की। उनका जीवन हमें यह सीख देता है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हों, साहस और दृढ़ संकल्प से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है। राणा सांगा की गाथा आज भी हमें देशभक्ति और वीरता की प्रेरणा देती है।
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